Sunday, September 7, 2014






प्रिय मित्रों ,
 आज मैं, आपको गत दिवस चर्चित विषय पर अपनी बातें स्पष्टरूपेण  आपके समक्ष रखता हूँ.
मैंने संस्कृत की मौलिकताओं के पतन के विषय में बातें कही चूँकि ये कहना उचित नहीं होगा कि हमारे समाज ने इस समस्या का समाधान नहीं निकाला , समाधान तो पहले भी थे और आज भी हैं.
उदहारण हेतु : किसी भी तकनीकि संस्थान अथवा विद्यालय/विश्वविद्यालयों के प्रमुख द्वार एवं प्रवेशिका पुस्तिका पर संस्कृत के कुछ श्लोकों के अंश संस्थान के प्रतीक चिन्ह के ऊपर ,नीचे या कलाकृतियों के साथ लिखा होता है .

आज संस्कृत का प्रयोग तो निश्चित होता है.लेकिन आज भी संस्कृत को जीवित रखने के लिए संस्कृत भाषा का प्रयोग अतिआवश्यक है.



आपका
मुनेश कुमार सिंह (स्नातकोत्तर विद्यार्थी)
संत लोंगोवाल अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी संस्थान
लोंगोवाल ,संगरूर,(पंजाब) भारत :

No comments:

Post a Comment